स्वयं का विवरण-

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कुलपति का सन्देश

1967 में स्थापित यह संस्थान/विश्वविद्यालय पंडित जवाहरलाल नेहरू और परम पावन दलाई लामा की संयुक्त पहल की परिणति है। इसका उद्देश्य भारत में तिब्बती प्रवासियों और भारत के हिमालयी क्षेत्रों के युवाओं का सांस्कृतिक और शैक्षिक आवश्यकताओं को ध्यान रखना था, विशेष कर जिन्हें चीनी अतिक्रमण के पहले तिब्बत में शिक्षित होने का अवसर मिलता था,और बाद में इसे प्रतिबंधित कर दिया गया। इसी उद्देश्य को दृष्टि में रखकर इस विश्वविद्यालय में तिब्बती ज्ञान-विज्ञान पर शोध, शास्त्रों के पुनरुद्धार और प्राचीन एवं मूल बॉन धर्म के साथ-साथ तिब्बत में प्रचलित बौद्ध धर्म के चारो संप्रदायों के पठन-पाठन और ज्ञान प्रदान करने हेतु कार्य प्रारम्भ किया गया, जो बाद में एक उत्कृष्टतम केंद्र के रूप में विकसित हुआ। विश्वविद्यालय भारत में तिब्बती समुदाय और विशेष रूप से उत्तर-पश्चिम से उत्तर-पूर्व तक हिमालयी क्षेत्रों के आकर्षण का केंद्र है। इसके अलावा, पश्चिमी देशों के विद्वान अपनी ज्ञान पिपासा की तृप्ति, ज्ञानार्जन और अध्ययन के निमित्त विश्वविद्यालय में आते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के महाविद्यालयों से स्नातक छात्रों के लिए वार्षिक शैक्षिक आदान-प्रदान का एक कार्यक्रम यहाँ संचालित होता है।

विश्वविद्यालय पारंपरिक ज्ञान के साथ आधुनिक शिक्षा प्रणाली और शिक्षाशास्त्र के बीच एक महत्वपूर्ण समन्वय स्थापित करता है, जिसमे एम.फिल. और पी-एच.डी. (विद्यावारिधि) स्तर तक के पाठ्यक्रम क्रमबद्ध तरीके से प्रस्तुत किये जाते हैं।

हमारे यहाँ एक जीवंत और गतिमान प्रकाशन इकाई है, जहाँ से तिब्बती स्रोतों से प्राप्त महत्वपूर्ण ग्रंथों को पुनर्स्थापित और अनुवादित करके अच्छी संख्या में प्रकाशित किया गया है । विश्वकोश, शब्दकोष और संस्कृत तथा तिब्बती के दुर्लभ ग्रंथों के संपादन पर परियोजनाएं चल रही हैं। वार्षिक रूप से प्रकाशित शोध आधारित पत्रिका “धी” को व्यापक स्वीकार्यता एवं प्रशंसा मिली है।

हमारे यहाँ एक जीवंत और गतिमान प्रकाशन इकाई है, जहाँ से तिब्बती स्रोतों से प्राप्त महत्वपूर्ण ग्रंथों को पुनर्स्थापित और अनुवादित करके अच्छी संख्या में प्रकाशित किया गया है । विश्वकोश, शब्दकोष और संस्कृत तथा तिब्बती के दुर्लभ ग्रंथों के संपादन पर परियोजनाएं चल रही हैं। वार्षिक रूप से प्रकाशित शोध आधारित पत्रिका “धी” को व्यापक स्वीकार्यता एवं प्रशंसा मिली है।

यह एक आवासीय विश्वविद्यालय है, जहाँ छात्र अपनी आवश्यकतानुसार अपने शिक्षकों तक पहुँच सकते हैं। परिसर में सभ्यता और संस्कृति का वातावरण व्याप्त है। इसे "मान्य विश्वविद्यालय" का दर्जा प्राप्त है। यह पूर्णरूपेण संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार, द्वारा वित्त पोषित है और इसे शिक्षा केंद्र के रूप में पांच सितारा मान्यता प्राप्त है।

मैं केंद्रीय उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान के अकादमिक परिवार के सदस्य के रूप में स्वयं को पाकर बहुत गौरवान्वित एवं खुशी महसूस करता हूँ।

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सहृदय,
प्रो. (डॉ.) वांगछुक दोर्जे नेगी

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