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हमारा इतिहास

भारत और तिब्बत के बीच शैक्षणिक और सांस्कृतिक संबंधों का एक समृद्ध और गौरवशाली इतिहास है। प्राचीन नालंदा और तक्षशिला परंपरा के विभिन्न भारतीय विद्वानों के सहयोग से तिब्बती शैक्षिक परंपरा को प्रोत्साहित किया गया । साथ ही, ज्ञान की तिब्बती परम्परा ने विभिन्न धार्मिक और दार्शनिक सिद्धांतों की भारतीय विचारधारा को भी समृद्ध किया। विचारों के इस आदान-प्रदान के आपसी संबंधों की पृष्ठभूमि में भारतीय और तिब्बती दोनों दृष्टिकोणों से बौद्ध परंपराओं के संरक्षण, पुनरुद्धार और उसे विकसित करने के लिए वर्ष -1967 के. उ.ति.शि.सं. की स्थापना की गई ।

संस्थान का स्थापना समारोह 28 जनवरी, 1978 को मनाया गया था ।. परमपावन 14वें दलाई लामा ने नए परिसर में लड़कों. के छात्रावास “पद्मसंभव” की आधारशिला 28 जनवरी, 1980 को रखी थी। तत्कालीन प्रधान मंत्री, श्रीमती इंदिरा गांधी ने 8 अप्रैल, 1983 को भारतीय गणमान्य व्यक्तियों के साथ संस्थान का दौरा किया।. परिसर के शैक्षिक महत्व और. इसके कार्य की प्रकृति की उत्कृष्टता को ध्यान में रखते हुए संस्थान को वर्ष 1988 में मान्य विश्वविद्यालय का दर्जा प्रदान किया गया था।

सारनाथ के शांत और स्वच्छ वातावरण में स्थित यह संस्थान बौद्ध मंदिरों, स्तूपों और बगीचों के बीच 29 एकड़ में स्थापित है। यह संस्थान अपनी शैक्षणिक उत्कृष्टता और शोध कार्यों के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है । यह उल्लेखनीय है कि यह संस्थान तिब्बती बौद्ध दार्शनिक विरासत का गढ़ है जिसे आधुनिक शिक्षाशास्त्र के व्यापक संदर्भ में पढ़ाया जाता है।

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