शैक्षणिक विभाग

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सोवा-रिग्पा विभाग

भारतीय-तिब्बती पारंपरिक चिकित्सा पद्धति के निदान और उपचार में समन्वय और प्रोत्साहन देने के लिए 1993 में सोवा-रिग्पा विभाग की स्थापना की गई थी। यह विभाग भारत सरकार के आयुष मंत्रालय के अन्तर्गत कार्यरत भारतीय चिकित्सा पद्धति राष्ट्रीय आयोग (एनसीआईएसएम) के अधीन कार्य करता है। यह विभाग सात सोवा-रिग्पा महाविद्यालयों में से एक है और उत्तर प्रदेश राज्य में एकमात्र है। यह अत्याधुनिक प्रयोगशाला, एक संपूर्ण पुस्तकालय और शिक्षाविदों की समृद्ध परम्परा के साथ-साथ आवश्यक सुविधाओ से सुसज्जित है। विभाग स्नातक स्तर पर बी.एस.आर.एम.एस नियमित पाठ्यक्रम के बाद एक वर्ष का प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रदान करता है, जहाँ शिक्षा का माध्यम तिब्बती भाषा है। सन् 2023 तक, 16 बैच उत्तिर्ण हो चुके हैं और वह व्यावसायिक रूप से अच्छी स्थिति में हैं। वर्तमान में, तिब्बती समुदायों और सीमान्त-हिमालयी क्षेत्र जैसे लद्दाख, किन्नौर, स्पीति, अरुणाचल प्रदेश के छात्रों के साथ-साथ नेपाल, भूटान आदि देशों के अंतर्राष्ट्रीय छात्र भी कार्यक्रम में शामिल हुए हैं। सोवा-रिग्पा विभाग के छात्रों को सामान्य छात्रों के साथ ही लड़कों और लड़कियों के लिए निर्मित आरामदायक छात्रावासों में समायोजित किया जाता है। यहाँ के भोजनालय में शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रकार का भोजन उपलब्ध कराया जाता है। छात्रों के लिये यहाँ पर पर्याप्त पाठ्येतर सुविधाएं भी प्रदान की जाती हैं। एन.सी.आई.एस.एम के निर्देशानुसार, सोवा-रिग्पा विभाग के भीतर आठ अन्य उपविभाग कार्यरत हैं।

विभाग द्वारा संचालित पाठ्यक्रम:

  1. स्नातक (यू.जी.) सोवा-रिग्पा (बी.एस.आर.एम.एस.)
  2. स्नातकोत्तर (पी.जी.) सोवा-रिग्पा (एमडी/एमएस)

पाठ्यक्रम की उपादेयता:

बीं.एस.आर.एम.एस./मेनपा कचुपा

स्नातक पाठ्यक्रम पूरा करने के बाद, सोवा-रिग्पा स्नातक निम्नलिखित कौशल में सक्षम होंगे

  1. एक चिकित्सक की भूमिका निभाने और जिम्मेदारियों को लेने में।
  2. ग्यु-शी (ग्रन्थ) के गहन सिद्धांतों,नियमों और अवधारणाओं  को समझने में।.
  3. विभिन्न रोगों को समझने और उसके सैद्धांतिक ज्ञान का उपयोग करने में ।
  4. विभिन्न विकारों का निदान और प्रबंधन करने के लिए नैदानिक सिद्धांतों का प्रयोग करने में ।
  5. सहज और उचित संवाद तथा निदान कौशल का उपयोग करते हुए, रोगियों को परामर्श देकर कर उनके देखभाल के लिए आवश्यक व्यावसायिक कौशल क्षमता का प्रदर्शन,सेवा की नैतिक भावना को अपनाते हुए समुदाय एवं रोगी भलाई के निरंतर कार्यरत रहना |
  6. सोवा-रिग्पा चिकित्सा और शल्य-चिकित्सा में अपने कौशल को लगातार निखारने के लिए चिंतनशील अभ्यास का उपयोग करने में।
  7. पारंपरिक ज्ञान के मूल्यांकन और व्याख्या करने के लिए विभिन्न प्रकार की शोध पद्धतियों को सुविधा अनुसार प्रयोग में लाना |
  8. चिकित्सा के उपचारात्मक सिद्धांतों के व्यावहारिक ज्ञान द्वारा रोगों के रोकथाम में सहयोग कर समाज में फैले रोग के भार को कम करने में ।
  9. स्नातकोत्तर कार्यक्रमों के माध्यम से विशेषज्ञता के अपने संबंधित क्षेत्रों में सक्षम, कुशल विद्वान, विशेषज्ञ, शिक्षक, चिकित्सक, और शोधकर्ताओं को तैयार करना ।
  10. सामान्य रूप से सभी संवेदनशील प्राणियों को लाभ प्रदान करने और विशेष रूप से मानव जाति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य और सुख-शांति प्रदान करने में।
  11. मानव मात्र या सभी प्राणी के स्वास्थ्य रक्षण और उनके देखभाल करने अधिकतम लाभ प्रदान के लिए सोवा-रिग्पा की समृद्ध परंपरा का संरक्षण, संवर्धन और विकास करने में

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