མྱུར་འཚོལ།

གསལ་བསྒྲགས་སྦྱར་པང་།  

राजभाषा पत्रिका ‘बोधिप्रभ’- एक नजर

तिब्बती तथा सीमान्त क्षेत्र के विद्यार्थियों की शिक्षा एवं प्रशिक्षण के उद्देश्य से परम पावन 14वें दलाई लामा के पवित्र प्रयासों से सन् 1967 में स्थापित केन्द्रीय उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान एक अद्वितीय सुप्रतिष्ठित संस्थान है ।

       सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के संघटक विभाग के रूप में शुभारंभ करके सन् 1977 में केन्द्रीय उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान नाम के साथ संस्थान ने भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अधीन स्वायत संस्थान का दर्जा प्राप्त किया ।

दिनांक 5 अप्रैल 1988 को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा धारा 3 के अन्तर्गत की गई अनुशंसा के आधार पर भारत सरकार के केन्द्रीय उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान की अद्वितीय कार्य पद्धति तथा उपलब्धियों के आधार पर संस्थान को मान्य विश्वविद्यालय का दर्जा प्रदान किया। यह संस्थान पूर्ण कुशलता के साथ भोट अध्ययन, बौद्ध अध्ययन तथा हिमालयी अध्ययन के क्षेत्र में अपने उद्देश्यों की पूर्ति हेतु सतत् अग्रसर है। निर्धारित विषयों के अध्ययन- अध्यापन के साथ यह संस्थान अपने शोध विद्यार्थियों एवं देश-विदेश से आने वाले शोध विद्यार्थियों का मार्गदर्शन कर रहा है। इस संदर्भ में संस्थान बौद्ध एवं बौद्धेतर भारतीय दार्शनिक विचारधाराओं, बौद्ध एवं पाश्चात्य दार्शनिक विचारधाराओं एवं वैज्ञानिकों के मध्य विचार विनिमय एवं संवाद के लिए एक सशक्त मंच प्रदान कर रहा है ।

अपने क्षेत्र में अध्ययन-अध्यापन के सर्वोत्कृष्ट प्रदर्शन के साथ ही संस्थान संघ के सांविधिक दायित्वों के अनुपालन के लिए भी प्रतिबद्ध है । एक तरफ जहाँ संस्थान राजभाषा की नीति-नियमों का पालन करते हुए राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय द्वारा जारी वार्षिक कार्यक्रम में निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करने के लिए कटिबद्ध है वहीं दूसरी तरफ संस्थान में राजभाषा के प्रयोग के लिए प्रेरक वातावरण तैयार करने हेतु कार्यशालाओं का आयोजन, राजभाषा संबंधी विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन, हिन्दी कवि सम्मेलन के आयोजन के साथ-साथ संस्थान में सृजनात्मक प्रतिभा का विकास करने के लिए राजभाषा कार्यान्वयन समिति की बैठक में राजभाषा की पत्रिका के प्रकाशन पर भी विचार किया गया एवं माननीय कुलपति महोदय के मार्गनिर्देशन में राजभाषा की पत्रिका के प्रकाशन का निर्णय लिया गया और तिब्बती विद्वान ‘बोधिप्रभ’ के नाम पर राजभाषा की पत्रिका  का नाम ‘बोधिप्रभ’ रखने  का निर्णय लिया गया ।

निर्णय लिया गया कि पत्रिका का प्रकाशन वार्षिकी आधार पर की जाय एवं इसमें संस्थान के शैक्षणिक/ गैर शैक्षणिक अधिकारियों एवं कर्मचारियों एवं उनके आश्रितों की रचनाओं के साथ-साथ बाहरी विद्वानों की स्तरीय रचनाएँ प्रकाशित की जाए। इसमें ऱाजभाषा, व्याकरण, बौद्ध दर्शन, कहानी, कविता, संस्मरण, राजभाषा नियमों एवं अधिनियमों, नियमित प्रयोग में आने वाले अंग्रेजी शब्दों का हिंदी रूपांतरण को समाहित करते हुए पत्रिका का प्रकाशन किया जाए एवं  राजभाषा सप्ताह के अवसर पर लोकार्पित किया जाए। उक्त क्रम में संस्थान द्वारा पत्रिका के वर्ष 2021, 2022 एवं 2023 का अंक लोकार्पित किया जा चुका है एवं 2024 का अंक के लिए रचनाएँ आमंत्रित की जा चुकी हैं ।

सम्पादन समिति

क्रम संख्यानामईमेल
1.प्रो. बाबूराम त्रिपाठी

brtripathi9@gmail.com

2डॉ. हिमांशु पाण्डेयhimanshu.nac@gmail.com
3.प्रो. धर्मदत्त चतुर्वेदीddcsanskrit.acd@cihts.ac.in
4श्री भगवान पाण्डेयbhagwanp.admn@cihts.ac.in
5डॉ. रमेश चन्द्र नेगीrcnegi.acd@cihts.ac.in
6श्री राजेश कुमार मिश्रrkmishra@cihts.ac.in
7श्री टी.आर.शाशनीtshashni.res@cihts.ac.in
8डॉ. ज्योति सिंहjyotisingh.acd@cihts.ac.in
9डॉ. अनुराग त्रिपाठीanuraghindi.acd@cihts.ac.in
10डॉ. सुशील कुमार सिंहsusheel.acd@cihts.ac.in

सलाहकार परिषद

 

क्रम संख्यानामईमेल
1.प्रो. उमेश चन्द्र सिंहucsingh.acd@cihts.ac.in
2डॉ. दोर्जे दमदुलdorjeed.acd@cihts.ac.in
3.डॉ. ल्हक्पा छेरिंग

lhakpa.acd@cihts.ac.in

4प्रो. सत्य पाल शर्माsatyapalsharmabhu@gmail.com
5

डॉ. सत्य प्रकाश पाल

समीक्षा समिति

 

क्रम संख्यानामईमेल
1.श्री सुनील कुमारexamwing@cihts.ac.in
2डॉ. शुचिता शर्माsuchitafa.acd@cihts.ac.in
3.डॉ. ए.के.राय

drarunrai.acd@cihts.ac.in

4डॉ. महेश शर्मा

maheshsharma@cihts.ac.in

5डॉ. प्रशान्त कुमार मौर्यprashantmaurya.acd@cihts.ac.in
6डॉ. कर्मा सोनम पालमोkspalmo.res@cihts.ac.in
7डॉ. रवि रंजन द्विवेदीraviranjan.acd@cihts.ac.in

दिशा-निर्देश

लेख को पन्ने (page) के एक ओर टाइप किया जाना चाहिए, चारों ओर डबल स्पेस के साथ, तथा चारों ओर चौड़ा मार्जिन (wide margin)(750 शब्दों से अधिक नहीं) होना चाहिए ।

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मूल पाठ के भीतर, उद्धरण की लेखक-तिथि विधि (author-date method of citation) को अपनाएं, अल्पविराम को छोड़कर। यदि किसी लेखक के एक से अधिक शब्द उद्धृत किए गए हैं, तो प्रकाशन के वर्षों को अल्पविराम से अलग करें (द्विवेदी 2010, 2011) । उद्धरणों की पृष्ठ संख्याओं को कोलन से अलग करें (द्विवेदी 2005: 107) और समावेशी संख्याओं को हाइफ़न करें (द्विवेदी 2005:136-28) । जब एक से अधिक लेखकों को उद्धृत किया जाता है, तो प्रविष्टियाँ कालानुक्रमिक होनी चाहिए, जिसमें विभिन्न लेखकों के कार्यों को अर्धविराम(semicolon) से अलग किया जाना चाहिए। सह-लेखक कार्यों के लिए, दोनों नामों का हवाला दें (संतोष और राजेश 2004); तीन या अधिक लेखकों द्वारा लिखित कार्यों के लिए, पहले नाम के बाद ‘et al’ का उपयोग करें (संतोष ‘et al’ 2003) लेखक का नाम फिर से दोहराने के बजाय, प्रासंगिक पृष्ठ संख्या प्रदान करें (Ibid:207)। यदि गजेटियर(gazetteers), रिपोर्ट और सरकारी संगठनों और अन्य संस्थाओं के कार्यों का हवाला दिया जाता है, तो उद्धरण में प्रकाशन को प्रायोजित करने वाली संगठनात्मक संस्था का नाम, पहली बार में पूरी तरह से लिखा हुआ उल्लेख करें (भारत सरकार, 2001), और बाद के उद्धरणों में इसके संक्षिप्त नाम या संक्षिप्त नाम का उपयोग करें (GOI, 2006)।

संदर्भ के अंतर्गत लेख में उद्धृत सभी कार्यों का ग्रंथसूची (bibliographic) विवरण निम्नलिखित क्रम में अलग-अलग दें: (क) लेख: लेखक का नाम; प्रकाशन का वर्ष; लेख का शीर्षक (within single inverted commas); पत्रिका का नाम (Italic); और खंड संख्या, अंक संख्या, और प्रारंभिक और अंतिम पृष्ठ संख्या। (ख) संपादित कार्य या संकलन में अध्याय; लेखक का नाम; प्रकाशन का वर्ष; अध्याय का शीर्षक (within single inverted commas); संपादक का नाम! संकलनकर्ता; पुस्तक का शीर्षक (Italic); अध्याय के आरंभ और अंतिम पृष्ठ संख्या; प्रकाशन का स्थान; और प्रकाशक का नाम। (ग) पुस्तक: लेखक का नाम; प्रकाशन का वर्ष; पुस्तक का शीर्षक (Italic); प्रकाशन का स्थान; और प्रकाशक का नाम। संदर्भ में सूचीकरण पहले लेखक के अंतिम नाम के वर्णमाला क्रम का पालन करना चाहिए।

योगदानकर्ताओं को एक अलग शीट पर अपना नाम, पदनाम, पता, संपर्क नंबर और ई-मेल प्रदान करना आवश्यक है।

केवल उन लेखों पर विचार किया जाएगा जो पहले प्रकाशित नहीं हुए हैं या जिन्हें कहीं और प्रकाशित करने के लिए विचार नहीं किया जा रहा है। इस आशय की घोषणा लेख के साथ प्रावरण पत्र (covering letter) के रूप में संलग्न की जानी चाहिए।

भविष्य योजना :

पत्रिका में कभी भी कोई विज्ञापन नहीं छापा जाएगा।

पुस्तक समीक्षा का निःशुल्क स्वागत किया जाएगा।

हम आशा करते हैं कि आप इन गतिविधियों से लाभान्वित होंगे और भाषाई एवं साहित्यिक विकास में भी भागीदार बनेंगे।

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